मिट्टी के छोटे से दीपक की लौ के आगे फीकी है इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध।

दीपावली के शुभ अवसर पर मिट्टी के दियों का ही रहता है खास महत्व।

सारंगपुर

बदलते दौर की हवा भले ही पुराने रीति रिवाजों को पीछे छोड़ने पर उतारू हों, मगर आज भी मिट्टी के एक छोटे से दीपक की लौ के आगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चकाचौंध के बाजार की चमक फीकी ही है। करवा चौथ हो या दीपावली हो अथवा कोई अन्य त्योहार, ये कुम्हारों के चाक और बर्तनों के बिना पूरे नहीं होते। कुम्हार के चाक से बने खास दीये ही दीपावली में चार चांद लगाते हैं। दीपावली का त्योहार नजदीक है ऐसे में कुम्हार के चाक ने गति पकड़ ली है और मिट्टी के दीपक बनाने का काम तेज कर दिया है। मिट्टी का दीपक पांच तत्वों से मिलकर बनता है जिसकी तुलना मानव शरीर से की जाती है। पानी, आग, मिट्टी, हवा तथा आकाश तत्व ही मनुष्य व मिट्टी के दीपक में मौजूद होते हैं। दीपक जलाने से ही समस्त धार्मिक कर्म होते हैं। दीपावली के शुभ अवसर पर मिट्टी के दीयों का ही अत्यंत महत्व है। वास्तु शास्त्र में इसका महत्व इस बात से है कि यदि घर में अखंड दीपक की जलाने व्यवस्था की जाए तो वास्तु दोष समाप्त होता है।

चाइनीज सीरीजों को टक्कर देंगे दीये :

एक दौर ऐसा भी था जब मिट्टी के दीयों की जगह चायनीज सिरिजो ने ले ली थी, लेकिन अब फिर मिट्टी के दीयों का दौर लौट आया है। कुम्हार के अनुसार दीयों की वैरायटी भी इतनी है कि ग्राहक के लिए कई चाइज रहेगी। ग्राहक चीनी दीये लेने की बजाए लोकल दीये खरीदेंगे। बाजार में आ रही चाइनीज सिरीजो से टक्कर लेने के लिए मिट्टी के दीपक तैयार हो रहे हैं। प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। पंडित शर्मा के अनुसार रौशनी के त्योहार का असली मजा दीपकों की रौशनी से है, ना कि इलक्ट्रोनिक लड़ियों से। उन्होंने कहा कि भगवान राम का स्वागत अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर ही किया था।

पर्यावरण संरक्षण में सहायक :

सिविल अस्पताल अधीक्षक मनीष चौहान का कहना है कि सरसों और घी डाल कर मिट्टी के दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मच्छरों का नाश होता है।