चौराहों पर भीख मांग रहे हैं बच्चे। यह कैसा बाल दिवस।अधिकारियों ने मूंद रखी आंखे। जनप्रतिनिधियों की चुप्पी,कैसे संवरेगा भविष्य। दर्जनों नौनिहाल होटलों पर कर रहे बर्तन साफ।
चौराहों पर भीख मांग रहे हैं बच्चे। यह कैसा बाल दिवस।अधिकारियों ने मूंद रखी आंखे।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी,कैसे संवरेगा भविष्य।
दर्जनों नौनिहाल होटलों पर कर रहे बर्तन साफ।
सारंगपुर
सरकार देश के नौनिहालों की जिंदगी संवारने के लिए भले ही कई प्रकार की शासकीय योजना चला कर नौनिहालों का बचपन गर्त में जाने से बचाने के लिए लाखों जतन करें, लेकिन यह सभी योजनाएं धरातल पर सिर्फ कागजों की शोभा बढ़ाती नजर आ रही है। 14 नवंबर को जहा देश के स्कूलों, अस्पतालों सहित कई शासकीय, अशासकीय विभागों में पंडित जहावर लाल नेहरू (चाचा) को याद कर बाल दिवस के रूप में मना रहे हे , वही शहर की हकीकत कुछ और ही बयां करती लोगों को दिखाई दी। बस स्टेंड के चौराहे पर एक बच्ची रस्सी पर चलकर अपनी जान जोखिम में डाल कर अपना गुजारा करती शहरवासियों को नजर आ रही थी, तो वही समीप ही परशुराम चौराहे पर एक बच्ची हाथ में थाली लेकर भीख मांग रही थी, ऐसे कई नौनिहालों को होटलों, मोटर गेरेजों पर काम करते हुए भी लोगों द्वारा देखा गया।
रस्सी पर जिंदगी का बैलेंस :
बुधवार को देखने में आया है की पुराने राष्ट्रीय राजमार्ग पर सडक किनारे 6 फीट ऊपर रस्सी पर चलते हुए लोग बालिका को देखते हैं तो लोगों के पैर थम जाते हैं, हर कोई रुककर उस बालिका की हिम्मत को देखने लगता है, उसके इस करतब और हिम्मत की सराहना करने लगता है, लेकिन बालिका के पैर रस्सी पर रुकते नहीं है, फिल्मी गीतों के बीच वह रस्सी पर गले में टंगे डंडे के बैलेंस से 20 फीट की दूरी को तय करती है। ये जोखिम से भरा करतब छत्तीसगढ़ की बैलाडीह गांव की रहने वाली 13 साल की राजकुमारी दिखाती है। नाम तो राजकुमारी है, लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए वह अपने परिवार के साथ बाल दिवस के दिन छत्तीसगढ़ से सारंगपुर इस करतब और हुनर को दिखाने पहुंची है। माता पिता सहित परिवार के आठ सदस्य अन्य शहरों में होते हुए सारंगपुर आए है। जो गांव से लेकर शहर में सडक किनारे रस्सी पर चलकर करतब दिखाते है। राजकुमारी ने बताया कि पिता परिवार के लोगों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जाते है और हम रस्सी पर चलकर शहर में सर्कस दिखाते है। राजकुमारी के साथ उसका भाई विशाल नट रहता है जो रस्सी के नीचे हमेशा अपने बहन की सुरक्षा के लिए खड़ा रहता है। एक साइकिल पर पानी से लेकर पूरा म्युजिक सिस्टम लगा होता है। दस दिनों तक यहां रहने के बाद वापस गांव चले जाते हैं। रस्सी पर चलने वाले हुनर को देखकर लोग हैरान रह जाते हैं और फिर सभी लोग कुछ पैसे थाली में रख देते हैं और मदद करते है।
5 से 6 घंटे रस्सी पर गुजरते हैं :
भाई विशाल ने बताया कि उसकी बहन एक बार रस्सी पर चढने पर करीब 40 मिनट तक चलती है। जिमसें कभी थाली तो कभी साइकिल के रिंग पर चलना होता है। छोटी प्लेट पर भी चलती है। दिनभर में करीब 5 से 6 घंटे राजकुमारी के रस्सी के उपर चलने में ही गुजरते हैं। 13 साल की राजकुमारी ने बताया कि इसके लिए कई महीनों तक अभ्यास करती है, इस दौरान कई बार चोट भी लगती है।
किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते हैं :
बताया जाता है कि बचपन से ही परिवार के लोगों द्वारा इसका अभ्यास करवाया जाता है। पूरा परिवार बचपन से अभ्यास में जुटता है। यह परिवार का एकमात्र रोजी रोटी का सहारा है। जो पुश्तैनी काम है, जिसमें हमारी कई पीढियां रस्सी के ऊपर चलते-चलते ही गुजर चुकी हैं। हमारी बच्चियां रस्सी पर चलती है तो इस खेल को देखने रुके लोग हमारी थाली में नगद पैसे डालकर जाते हैं, इस कला को दिखाने के लिए हम किसी भी व्यक्ति से आगे से पैसे नहीं मांगते हैं, लोग अपनी इच्छा से ही हमारी थाली में पैसे डाल जाता है।