1985 में खुली सिद्धार्थ फैक्ट्री बंद, नागरिक हो गए बेरोजगार
फैक्ट्री मालिकों ने शासन से मिलने वाली सब्सिडी को  हडपने के बाद कर दिया दिवालिया घोषित।
सिद्धार्थ ट्यूब्स पर विद्युत विभाग का करीब 55 लाख बकाया, विभाग ने लगाया बोर्ड।

सारंगपुर

नगर को औद्योगिक बनाने के लिए साल 1985-86 के लगभग शुरू हुई सिद्धार्थ ट्यूब फैक्ट्री की सुबह यहां सायरन की आवाज से होती थी। हजारों लोग सुबह से ड्यूटी के लिए रवाना होते थे। जिससे नगर सहित आसपास के बसे कस्बे पूरा आबाद था चहल-पहल थी और बाजार में भी रौनक रहती थी। इसके बाद जनप्रतिनिधियों ने इसकी ओर ध्यान देना बंद कर दिया और क्षेत्र की स्थिति दिनोंदिन बदतर होती चली गई। साल 2010-15 के बीच में यह क्षेत्र वीरान हो गया। कुछ महीनों चलने वाली चंद उद्योग भी कुछ समय बाद मरणासन्ना अवस्था में पहुंच गए थे। इनमे काम करने वाले अधिकांश पदस्थ कर्मचारियों में अधिकांश बाहर के थे। अब हालत यह है कि औद्योगिक क्षेत्र से सारंगपुर के लोग कोसों दूर हो गए हैं। उल्लेखनीय है की पहले राजगढ जिले का नाम सामने आते ही जिले में सारंगपुर शहर का नाम बडे औद्योगिक क्षेत्र के रूप में नगर का दृश्य सामने आता था। करीब 20 साल तक औद्योगिक क्षेत्र आधादर्जन उद्योगों से पूरी तरह आबाद था। शहर सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से हजारों लोग रोज यहां संचालित उद्योगों में काम करने के लिए पहुंचते थे। औद्योगिक क्षेत्र के आबाद रहने से सारंगपुर का कारोबार लगातार फल-फुल रहा था। लोग भी खुश थे क्योंकि उन्हें कहीं दूर जाए बगैर अपने ही क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त साधन मिल रहे थे। त्योहारों पर भी खासी रौनक बनी रहती थी। खासकर दीपावली का तो नगर में अलग रंग का उत्सव आता था क्योंकि यहां संचालित उद्योगों की तरफ से कार्यत मजदूरों की खासी पूछ परख होती थीं। ऐसे में सारंगपुर शहर को जिले की शान भी कहा जाता था, लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। यहां पर संचालित फैक्ट्री पूरी तरह से बंद हो गई है।
निजी फैक्ट्रियों ने शासन की सब्सिडी को किया हडप
जानकारों की माने तो 1985 में शातल कत्था फैक्ट्रीफैक्ट्री चालू हुई थी तो वही दूसरी और 1988 में पहली फैक्ट्री सिद्धार्थ ग्रुप के नाम से शहर से करीब 4 किलोमीटर दूर एबी रोड पर संचालित की गई थी। साथ ही तिरुपति इंडस्टरीज 90 के दशक में एक और सिद्धार्थ के नाम से  चालू हुई थी कुल मिलाकर तीनों फैक्ट्री पर टीवी शासन का उद्योग से अनुदान मिला था, बाद में संचालित फैक्ट्रियों के करता धरता द्वारा सन 2010 के लगभग फैक्ट्री का दिवालिया घोषित कर शासन की सब्सिडी को हडप कर लिया गया। साथ सिद्धार्थ ट्यूब फैक्ट्री पर विद्युत मंडल एवं बैंक का वर्तमान में भी बकाया चल रहा है। देखने आया है की अभी सिद्धार्थ फैक्ट्री के सामने विद्युत विभाग का 54 लाख का मेन गेट पर बोर्ड लगा हुआ है।
कांग्रेस शासन में फलीफूली होने के बाउजुद हो गई बंद
नगरवासियों की माने तो नगर कि अधिकांश फैक्ट्री 2005 से 2010 के मध्य लगभग बंद जैसी हो गईं थी कुछ शासकीय अनुदान लोन सब्सिडी कि सुविधाओं का लाभ उठाकर बंद कर दी गईं तो कुछ नेताओं के इशारे पर बंद कि गईं। वैसे अधिकांश फैक्ट्री कांग्रेस शासन काल मे फली फूली और बंद कर दी गईं। व्यापारियों की माने तो अनेक फैक्ट्रियों की अनेकोबार नीलामी प्रक्रिया शुरू की गई किन्तु अन्य राजनेतिक दबाव के चलते यह प्रक्रिया रोक दी गईं।
बंद फैक्ट्रियां बेरोजगारी का प्रमुख कारण
शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में लोग इसलिए परेशान है की सालों पहले बंद हुई फैक्ट्रियों के कारण बेरोजगारी बडी है। इसके बाद कोई प्रयास जमीनी स्तर पर नहीं किए गए। बता दे की सालों पहले शहर में सिद्धार्थ ट्यूब फैक्ट्री सातल कत्था ग्लूकोज फैक्ट्री बल्ब फैक्ट्री संचालित हुआ करती थी लेकिन इन संचालकों द्वारा कांग्रेस शासन में सांठगांठ कर सरकार से मिलने वाली सब्सिडी खाकर दिवालिया घोषित कर बंद कर दी गई जबकि उक्त फैक्ट्री दूसरे राज्यों में संचालित है।
हाथ ठेले से गुजर-बसर
पूर्व में जो मजदूर या कर्मचारी उद्योगों में काम करते थे उद्योग बंद होने से बेरोजगार हो गए। कई लोग आज ठेला धकाकर जीवन गुजार रहे हैं तो कई छोटी-मोटी दुकान का संचालन कर जीवन बसर कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो मजदूरों ने खेतों में काम करके ही रोजी-रोटी कमाना शुरू कर दिया है। बता दे की यहां पूर्व समय में संचालित उद्योगों में स्थानीय कर्मचारियों की संख्या न के बराबर ही रही है।
बढते पलायन के बीच रोजगार तलाश रह युवा
कुछ साल पहले शहर के लोगों को रोजगार देने वाला सारंगपुर प्रमुख स्थान था। नगर सहित पूरे जिले और अन्य जिलों से भी बेरोजगार यहां पहुचकर काम करते थे। ऐसे में कभी सारंगपुर की पहचान रोजगार देने वाले नगर के रूप में थी, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। रोजगार देने वाले नगर से लगातार युवाओं का पलायन जारी है। यहां के लोग काम की तलाश में दूसरे शहरों का रुख कर रहे है।
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