किसी जमाने में मेहसूर सारंगपुर का सिनेमा घर अब बनता जा रहा है खंडहर
लोगों का देर रात जहा होता था मनोरंजन वहा उगाई जा रही फसल
बढ़ी बढ़ी झाड़ियों के बीच खंडहर बना सिनेमाघर, पनप रहे जीवजंतु
किसी जमाने में इसी सिनेमाघर से रहती थी बाजार में चहल पहल
सारंगपुर
किसी जमाने में शहर के बाजारों में रात 1 बजे तक चहल पहल रखने वाला अशोक टाकीज इन दिनों जीर्णशीर्ण होकर जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। इस परिसर में अब लोगों द्वारा खेती बाड़ी करने फसल उगाई जा रही है। वही दूसरी तरफ अशोक टाकीज में अब जहरीली जीवजंतु के पनपते दिखाई दे रहे। टाकीज के आसपास उग रही बड़ी बड़ी झाड़ियों से ये परिसर अब वीराने में तब्दील होता दिखाई दे रहा है। जिसके कारण देर रात यहां असामाजिक तत्त्वों का जमावड़ा बना रहता है, साथ ही देर रात यहां से गुजरने वाले लोगों में भय की स्थिति बनी रहती है।
अतीत का हिस्सा बना सिनेमाघर :
मनोरंजन के लिए किसी समय नगर में शान समझे जाने वाला सिनेमाबर आज अतीत का एक हिस्सा बन चुका है। जहां कभी लोगों की भीड़ जुटा करती थी, वहां अब मैदान में सब्जियों की खेती की जा रही है। खंडहर का रूप ले चुके सिनेमाघर में जानवरों, घासफूसव जहरीले जीव जन्तुओं ने अपना कब्जा जमा लिया है। ओटीटी, सिनेप्लेक्स आदि के चलन के दौर में सिनेमा हाल एक पुरानी यादों मे शुमार होता जा रहा है।
रहवासी को आती थी आवाजे :
बता दे की शहर मे संचालित सिनेमाघर में काफी लंबे समय तक दो इंटरवल होते थे। बिजली गुल होने पर काफी देर तक दर्शक हाल मे शोर मचाते रहते थे। बाद मे इंजन के माध्यम से शो चलते थे। फिल्म के दौरान टाकीज में आए ब्रेको से मनोरंजन करने पहुंचे लोगों की हसने, दहाड़ने, सहित ठहाकों की आवाज समीप के रहवासियों तक आसानी से पहुंच जाया करती थी। नगर के एक मात्र सिनेमाघर में सबसे ज्यादा चलने वाली फिल्मों में अमिताभ, सुनील दत्त, राजकुमार सहित अनेकों फिल्मी एक्टरों की फिल्म दिखाई जाती थी। बताया जाता है की कई बार संचालक द्वारा धार्मिक फिल्म गंगा सागर, जय संतोषी मां, के साथ साथ स्कूली बच्चों के बालमनुहार दिखाए जाते थे, सिनेमाघर ने पूर्व में कई रिकार्ड भी कायम किए है।
1962 में हुई थी सिक्कों की बरसात :
बताया जाता है की सारंगपुर मे सबसे पहले वर्ष 1962 मे सिनेमाघर चालू हुआ था, जिसमे लकड़ी की बेंच व मूह्हे लगाए जाते थे। समय समय पर इसमें बदलाव होते रहे। बंद हो चुके सिनेमा का संचालन करने वाले संचालक के अनुसार नगर में सबसे पहले धार्मिक फिल्म का प्रदर्शन हुआ था। शो टाइम के दौरान महिलाओं की भीड़ ने फिल्म चालू होने पर आरती उतारी व नारियल चढ़ाए थे। उस दौरान 5-10 पैसों के सिक्कों की बरसात की थी।
रात एक बजे तक खुली रहती थी दुकानें :
शहर के गांधी चौक पान व्यवसाई हेम प्रकाश जोशी, सदर बाजार सवेरा होटल संचालक मुकेश पुष्पद ने बताया की पूर्व में सिनेमाघरों के चलने से दिन में ग्रामीणों लोगों से बाजार में काफी चहल पहल रहती थी। वही रात 12 बजे सिनेमा खत्म होने के बाद रात एक बजे तक पान दुकान, चाय होटलों पर लोगों की भीड़ से अच्छा व्यापार किया जाता था। लेकिन सिनेमाघर बंद होने से इन दिनों बाजार में रात 9 बजे मार्केट में सन्नाटा पसरा दिखाई देता है।
शासन को करना चाहिए मदद :
इस संबंध मे लोगों का कहना है की बड़े बड़े खर्चों के कारण बंद हो रहे सिनेमा घरों को पुनर्जीवन देने के लिए शासन स्तर पर सिनेमाघर संचालकों को विभिन्न सुविधाएं देने के लिए मदद की जाना चाहिए। सिनेप्लेक्स की तुलना में इसकी टिकट दर कम रहती है, जिससे दर्शकों को कम खर्चे मे मनोरंजन उपलब्ध होता है।